वह लम्हा, उस घड़ी के आने की देरी थी,
आज जीवन ने एक अजीब दासता घेरी थी I
वर्षों बाद मैंने जिस अहसास को पाया था,
उस स्वर्ण पल के लिए मैंने दिन-दिन संजोया था I
डरती थी कुछ और ही ना हो जाए,
यह अटूट विश्वास कहीं खो ना जाए,
कोई अचंभा मुझसे टकरा ना जाए,
भाग्य मुझे एक बार फिर धोका ना दे जाए I
आ रहा था पास वह लम्हा खुशी का,
पहरा था सबके मुख पर सिर्फ खामोशी का I
था माता-पिता को विजय का अहसास,
इससे बढ़ गया मेरे मन का विश्वास I
लगा, ईश्वर ने मुझे इस काबिल चुना,
जब मैंने मंच पर अपना नाम सुना I
मंच पर मुझे बुलाया गया,
‘सर्वोत्तम विध्यर्थी’ का पुरस्कार मुझे दिया गया I
जिसने सभी के दिलो को धड़काया था,
आज उसने मेरे जीवन के उस लम्हे को चमकाया था I
उस पल ने ले लिया था मेरा सुख-चैन छीन,
वह था मेरे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन I